Thursday, May 2, 2019

मसूद अज़हर के मसले पर चीन नरम क्यों पड़ा?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बुधवार को पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया.
ये मुमकिन हो सका क्योंकि पाकिस्तान के सबसे बड़े समर्थक और इस मामले में हर बार वीटो लगा देने वाले चीन ने अपने रुख़ में बदलाव किया.
इससे पहले जब भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने पर चर्चा हुई, तो चीन ने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर ऐसा होने से रोक दिया.
क़रीब 10 साल से चीन का यही रुख़ रहा है. इस दौरान उसने हमेशा यही कहा कि इस मामले में जल्दबाज़ी नहीं की जानी चाहिए; और ऐसे फैसले तभी प्रभावी हो सकते हैं, जब वक़्त और सब्र के साथ काम लिया जाए और सभी सदस्यों में सहमति बने.
भारत ने मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सबसे पहले 2009 में मुंबई में हुए 26/11 हमलों के बाद रखा था.
सुरक्षा परिषद में वीटो पावर रखने वाले स्थाई सदस्य अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस ने भी बाद में इस तरह का प्रस्ताव लाया जबकि एक और स्थाई सदस्य रूस अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रस्ताव का समर्थन करने का वादा करता रहा है.
चीन को अकेला छोड़ते हुए सुरक्षा परिषद के अस्थाई स्दस्यों में से भी ज़्यादातर इस प्रस्ताव के समर्थन में आ गए थे. चीन की इस बात के लिए निंदा होने लगी कि वो पाकिस्तान स्थित इस चरमपंथी का समर्थन कर रहा है जिसका ट्रैक रिकॉर्ड काफ़ी ख़राब रहा है.
लेकिन जब सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध कमेटी मसूद अज़हर के मामले में आम राय नहीं बना सकी तब फ़्रांस ने इस मामले में अगुवाई करते हुए ख़ुद ही मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया. इससे चीन और अलग-थलग पड़ गया.
भारत में इसी साल फ़रवरी में पुलवामा में हुए चरमपंथी हमले के बाद फ़्रांस, ब्रिटेन और अमरीका ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध कमेटी की मार्च में हुई बैठक में ये प्रस्ताव फिर से रखा. लेकिन चीन ने आख़िरी समय पर एक बार फिर इसपर 'तकनीकी रोक' लगा दी और ये मुद्दा एक बार फिर छह महीने के लिए ठंडे बस्ते में चला गया.
ये चौथी बार था जब चीन ने 'तकनीकी रोक' लगाई थी और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति से इस मसले पर और चर्चा करने के लिए कहा था.
लेकिन इसके कुछ ही दिनों के बाद चीन के विदेश मंत्री और भारत में उनके राजदूत इस मुद्दे का जल्द समाधान निकालने की बात करने लगे और छह हफ़्ते के अंदर ही चीन ने इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी.
इसकी एक वजह ये हो सकती है कि चीन की ओर से बार-बार लगाई जा रही इस तकनीकी रोक को देखते हुए ट्रंप प्रशासन (जिसका चीन के साथ पहले से व्यापार युद्ध चल रहा है) ने पिछले महीने सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर बहस करने का प्रस्ताव दिया था. अमरीका ने कहा था कि ये बहस सुरक्षा परिषद के टेबल पर होनी चाहिए.
अमरीका के इस प्रस्ताव ने चीन को परेशानी में डाल दिया क्योंकि अब चीन को अपना रवैया सार्वजनिक रूप से रखना पड़ता. इससे पहले वो प्रतिबंध समिति की बंद दरवाज़ों के पीछे होने वाली बैठकों में अपनी बात रखता था जिससे ये पता नहीं चल पाता था कि इस मामले में चीन दरअसल क्या कहता था.
इस तरह का दबाव बनता देख पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने ये प्रचार करना शुरू कर दिया कि मसूद अज़हर बहुत बीमार हैं और जबतक उनके ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिलता, तबतक उन्हें कोर्ट में घसीटा नहीं जाना चाहिए.
इसने चीन और पाकिस्तान (ख़ासकर वहां की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई और सेना) को ये सोचने पर भी मजबूर किया होगा कि क्या मसूद अज़हर अब उनके किसी काम के नहीं रहे और क्या वो भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए जाने वाले हथकंडे के बजाए एक बोझ बन गए हैं.
ये भी दिलचस्प है कि चीन ने ये फ़ैसला ऐसे वक़्त पर किया जब एक दिन पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान चीन की बेल्ट एंड रोड समिट में हिस्सा लेकर